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Thursday, October 9, 2008

रहीम संदेशः राम का नाम मूंह में धोखे से भी आ जाये तो मिलती है परमगति

रहिमन धोखे भाव से, मुख से निकले राम
पावत पूरन परम गति, कामादिक कौ धाम


कविवर रहीम कहते हैं कि अगर धोखे से भी किसी के मुख में राम का नाम आ जाये तो उसे परमगति प्राप्त होती है भले ही वह व्यक्ति काम के धाम का रहने वाला हो।

रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिए डारि
जहां काम आवै सुई, कहा करै तलवारि


कविवर रहीम कहते हैं कि बड़े आदमी को देखकर छोटे की अपेक्षा न करें क्योंकि समय का पता नहीं कब किसकी आवश्यकता पड़ जाये। जहां सुई की आवश्यकता होती है वहां तलवार काम नहीं आती-यह बात ध्यान में रखना चाहिये।

वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-भगवान की भक्ति का भाव अगर एक बार भी हृदय में उपस्थित हो जाये तो आदमी को महान सुख की प्राप्त होती है। रहीम जी का यह कहना कि एक बार भी धोखे से मूंह में राम का नाम आ जाये तो आदमी को परमगति प्राप्त होती है-एकदम सत्य है। उनका आशय यही है कि आदमी कभी एक बार भी हृदय से भगवान का नाम स्मरण करे तो उसे पुण्य प्राप्त होता है। वैसे लेने को तो कई लोग राम का नाम लेते हैं पर वह उनके हृदय से नहीं निकलता। उनके लिये यह केवल एक शब्द है नाम नहीं। मुख से राम शब्द निकलने का तात्पर्य यही है कि वह हृदय से निकलकर आता हो। राम के नाम की महिमा अपरंपार है इसे वही समझ सकते हैं जो उनकी भक्ति करते हैं।

अक्सर हमारे सामने कोई विशिष्ट व्यक्ति आता है तब हम अपने पास मौजूद स्थित सामान्य आदमी की अपेक्षा कर देते हैं यह सोचकर कि उसका कोई महत्व नहीं हैं। देखा जाये तो यहां कोई न विशिष्ट है न सामान्य। हर व्यक्ति की समयानुसार उपयोगिता होती है। जिन्हें हम विशिष्ट समझकर उनकी सेवा जीवन भर करते हैं वह हमारे किसी काम के नहीं होते जबकि जो छोटे लोग हैं उनमें हमारा प्रतिदिन काम पड़ता है। कथित विशिष्ट लोग तो कई बार काम की मना भी कर देते हैं और कई विशिष्ट तो हमारे साथ इसलिये संपर्क रखते हैं कि वह समाज में अपनी विशिष्टता का बोध सभी लोगों को कराते रहें कि देखो हमारे पीछे बहुत से लोग हैं-हमारा जीवन हमेशा छोटी घटनाओं और कर्मों के साथ ही आगे बढ़ता है जिसमें छोटे आदमी की आवश्यकता ही अधिक होती है। इसलिये किसी के साथ व्यवहार करते उसे छोटा या बड़ा नहीं समझना चाहिये।
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