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Wednesday, August 27, 2008

विदुर नीति:मित्र निर्धन हो तो भी उसका सम्मान करें

१.जो मित्रों से सत्कार और सहायता पाकर कृतार्थ होकर भी उनका साथ नहीं निभाते ऐसे कृत्घ्नों के मरने पर उनका मांस तो मांसाहारी पशु भी नहीं खाते।
२.धनवान हो धनहीन मित्र का सम्मान करें। मित्रों से न तो किसी प्रकार की याचना करें और न ही उनकी परीक्षा लें।
३.दुष्ट पुरुषों का स्वभाव मेघ के समान चंचल होता है, वे सहसा क्रोध कर बैठते हैं और अकारण ही प्रसन्न हो जाते हैं।
४.हंस जिस प्रकार सूखे सरोवर के पास मंडरा कर रह जाते हैं उनके अन्दर प्रवेश नहीं करते उसी प्रकार जिसके ह्रदय में चंचलता का भाव विद्यमान है और अज्ञानी हैं वह भी इन्द्रियों के वश में रहता है अरु उसे अर्थ की प्राप्ति नहीं होती।
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3 comments:

Udan Tashtari said...

सुविचारों के लिए आभार.

संगीता पुरी said...

आज के युग में ये बातें नहीं चल रही है.... स्टेटस देखकर मित्रता हो रही है.... इसलिए तो मित्रता का कोई अर्थ नहीं रह गया है.....मौज मस्ती करने के अलावा।

महेन्द्र मिश्र said...

saty suvichaar. likhate rahiye.dhanyawad.

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