२.धनवान हो धनहीन मित्र का सम्मान करें। मित्रों से न तो किसी प्रकार की याचना करें और न ही उनकी परीक्षा लें।
३.दुष्ट पुरुषों का स्वभाव मेघ के समान चंचल होता है, वे सहसा क्रोध कर बैठते हैं और अकारण ही प्रसन्न हो जाते हैं।
४.हंस जिस प्रकार सूखे सरोवर के पास मंडरा कर रह जाते हैं उनके अन्दर प्रवेश नहीं करते उसी प्रकार जिसके ह्रदय में चंचलता का भाव विद्यमान है और अज्ञानी हैं वह भी इन्द्रियों के वश में रहता है अरु उसे अर्थ की प्राप्ति नहीं होती।
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संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप
3 comments:
सुविचारों के लिए आभार.
आज के युग में ये बातें नहीं चल रही है.... स्टेटस देखकर मित्रता हो रही है.... इसलिए तो मित्रता का कोई अर्थ नहीं रह गया है.....मौज मस्ती करने के अलावा।
saty suvichaar. likhate rahiye.dhanyawad.
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