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Wednesday, June 25, 2008

चाणक्य नीतिःकपट रहित शुद्ध आचरण ही होता है धर्म

1.आज के युग में अर्थ की प्रधानता है और धन संचय प्रमुख आधर है। धन संचय हर मनुष्य के लिये आवश्यक है क्योंकि समय पड़ने पर कब उसकी जरूरत होती है पता ही नहीं पड़ता।
2.संसार में कोैन ऐसा व्यक्ति है जिसके कुल में दोष नहीं है। अगर गौर से देखों तो सभी कुलों में कहीं न कहीं कोई दोष दिखाई देता है। उसी प्रकार इस भूतल पर ऐसा कौनसा प्राणी है जो कभी रोग से पीडि़त नहीं होता या उस पर विपत्ति नहीं आती। इस प्रथ्वी पर ऐसा प्राणीनहीं मिल सकता जिसने हमेशा सुख ही देखा हो
3.किसी भी व्यक्ति के कुल का अनुमान उसके व्यवहार से लग जाता है। उसकी भाषा से उसके प्रदेश का का ज्ञान होता है। उसके शरीर को देखकर उसके खानपान का अनुमान किया जा सकता है। इस तरह किसी भी व्यक्ति से बातचीत में उसके बारे में बहुत कुछ जाना जा सकता है।
4.वह भोजन पवित्र कहलाता है जो विद्वानों के भोजन करने पर शेष रह जाता है। दूसरे का हित करने वाली वृत्ति ही सच्ची सहृदयता है। श्रेष्ठ और बुद्धिमान पुरुष वही होता है जो पापकर्मों में प्रवृत्त नहीं होता। कल्याण क लिये वह धर्म और कर्म श्रेष्ठ है जो अहंकार के बिना किया जाये। छलकपट से दूर रहकर शुद्ध आचरण ही करना धर्म है।

1 comment:

आलोक साहिल said...

बिल्कुल सही बात जी
आलोक सिंह "साहिल"

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