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Sunday, July 22, 2007

चाणक्य वाणी

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१.धूर्तता, अन्याय और बैईमानी आदि से अर्जित धन से संपन्न आदमी अधिक से अधिक दस वर्ष तक संपन्न रह सकता है, ग्यारहवें वर्ष में मूल के साथ-साथ पूरा अर्जित धन नष्ट हो जाता है।
*इसका सीधा आशय यह है कि भ्रष्ट और गलत तरीके से कमाया गया पैसा दस वर्ष तक ही सुख दे सकता है, हो सकता है कि इससे पहले ही वह नष्ट हो जाय।
२. अर्थाभाव में मित्र, स्त्री, नौकर स्नेहीजन भी व्यक्ति का आदर नहीं करते, यदि वही व्यक्ति पुन: संपन्न हो जाये तो अनादर करने वाले फिर आदर करने लगते हैं।

1 comment:

राज भाटिय़ा said...

सारथी जी नमस्कार,
चाणक्य वाणी के लिए बहुत बहुत ध्न्य्वाद,

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