समस्त ब्लॉग/पत्रिका का संकलन यहाँ पढ़ें-

पाठकों ने सतत अपनी टिप्पणियों में यह बात लिखी है कि आपके अनेक पत्रिका/ब्लॉग हैं, इसलिए आपका नया पाठ ढूँढने में कठिनाई होती है. उनकी परेशानी को दृष्टिगत रखते हुए इस लेखक द्वारा अपने समस्त ब्लॉग/पत्रिकाओं का एक निजी संग्रहक बनाया गया है हिंद केसरी पत्रिका. अत: नियमित पाठक चाहें तो इस ब्लॉग संग्रहक का पता नोट कर लें. यहाँ नए पाठ वाला ब्लॉग सबसे ऊपर दिखाई देगा. इसके अलावा समस्त ब्लॉग/पत्रिका यहाँ एक साथ दिखाई देंगी.
दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका


हिंदी मित्र पत्रिका

यह ब्लाग/पत्रिका हिंदी मित्र पत्रिका अनेक ब्लाग का संकलक/संग्रहक है। जिन पाठकों को एक साथ अनेक विषयों पर पढ़ने की इच्छा है, वह यहां क्लिक करें। इसके अलावा जिन मित्रों को अपने ब्लाग यहां दिखाने हैं वह अपने ब्लाग यहां जोड़ सकते हैं। लेखक संपादक दीपक भारतदीप, ग्वालियर

Wednesday, May 25, 2011

चाणक्य नीति-कमाई से ज्यादा खर्च करना संकट का कारण (chankya niti-kamai aur kharch sankat ka karan)

              वैश्विक उदारीकरण के चलते विश्व में उधार लेकर उपभोग की वस्तुऐं क्रय करने की प्रवृत्ति बढ़ी है। हमारे देश में तो वैसे ही रोजगार की कमी रहती है उस पर आजकल आधुनिक सुख सुविधाओं की वस्तुऐं जुटाने के लोग इतने आतुर हो जाते हैं कि अपने आय के साधनों की परवाह ही नहीं करते जिससे उनके यहां घरेलु आर्थिक संकट बिना बुलाये मेहमान की तरह हमेशा विराजमान रहता है। इसके अलावा कामकाज के आधुनिक साधनों की वजह से वैसे भी श्रम का उपयोग कम होने से बेरोजगारी बढ़ रही है जिसकी वजह से हमारे यहां युवाओं के लिये विकास का मार्ग अवरुद्ध हो रहा है। मगर उनको भी मोबाइल, कंप्यूटर, गाड़ी और अन्य सामान चाहिए जिससे उनमें से अनेक लोग अपराध की तरफ चले जाते हैं।
             इस विषय पर चाणक्य नीति में कहा गया है कि
                ---------------------------------------------------
            अनालोक्य व्ययं कर्ता ह्मनाथ‘ कलहप्रियः।
            आतुरः सर्वक्षेत्रेषु नरः शीघ्रं विनश्यति।।
             ‘‘बिना विचार किये अपनी आय से अधिक व्यय करने वाला, साथियों के बिना ही अपना सामूहिक अभियान या युद्ध प्रारंभ करने वाला तथा अनेक स्त्रियों में रुचि रखने वाला व्यक्ति शीघ्र ही प्राप्त होता है।’’
                  हम अगर आज अपने समाज की स्थिति पर नज़र डालें तो ऐसा लगता है कि वह एक पतनशील समाज हो गया है। लोभ, लालच और अहंकार के वश लोग एक दूसरे से भावनात्मक रूप से कट गये हैं और रिश्ते केवल नाम के रह गये हैं। उससे भी बदतर हालत यह है कि आजकल कोई आदमी संकट पड़ने पर किसी पर भरोसा नहंी करता। यही कारण है कि लोग कर्ज लेकर पहले तो घी पी लेते हैं पर जब मर्ज बढ़ जाता है तो उनको अपने आर्थिक संकट से उबरने का कोई मार्ग नहीं  दिखता। इसी कारण हमारे देश में आत्महत्या की घटनायें बढ़ गयी हैं। कहीं कहीं तो ऐसा भी होता है कि परिवार का मुखिया अपने पूरे परिवार को जहर देकर बाद में स्वयं भी खा लेता है। वैसे भी आजकल प्रचार माध्यमों ने आम आदमी की चिंत्तन क्षमता को हर लिया है। एक तरफ वह उपभोग की वस्तुऐं के लिये प्रेरित करते है तो दूसरी तरफ ऋण मार्ग का पता भी बताते हैं। ऐसे में जो ज्ञानी और व्यवहारिक लोग हैं वही अपना मानसिक संतुलन रख पाते हैं वरना तो पतन के मार्ग पर चलने को सभी आतुर दिखते हैं।

लेखक संकलक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा  'भारतदीप',Gwalior
Editor and writer-Deepak Raj Kukreja 'Bharatdeep'
http://deepkraj.blogspot.com
-------------------------
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन

No comments:

विशिष्ट पत्रिकायें