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Thursday, June 21, 2007

चाणक्य नीति

मन का संयम अर्थात शांति और स्थिर भाव के समान कोई दूसरा तप नहीं है, संतोष जैसा कोई सुख नहीं, तृष्णा जैसा दु:ख देने वाला और भयंकर रोग नहीं तथा दया जैसा स्वच्छ और अच्छा दूसरा कोई धर्म नहीं । अत: सुख के इच्छुक व्यक्ति को तृष्णा से बचना चाहिए तथा सफलतम जीवन में शांति,संतोष और दया को अपनाना चाहिए। इसी में महानता है।
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2 comments:

हरिराम said...

चाणक्य के अर्थशास्त्र से भी कुछ उद्धृत कर देते रहें।

हरिराम said...

चाणक्य के कौटिल्य अर्थशास्त्र से भी उद्धृत कर कुछ छापें।

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