समाधि से जीवन चक्र स्वतः ही साधक के अनुकूल होता है।
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योगश्चित्तवृत्तिनिरोशः
हिन्दी में भावार्थ -चित्त की वृत्तियों का निरोध (सर्वथा रुक जाना योग है।
तदाद्रष्टु स्वरूपऽवस्थानम्
हिन्दी में भावार्थ-उस समय अपने रूप में स्थिति हो जाती है।
वृत्तसारूप्यतिरत्र
हिन्दी में भावार्थ-सामान्य समय में वृत्ति के सदृश स्वरूप होता है।
पतंजलि योग दर्शन ऐसा प्रमाणिक ग्रंथ जिसमें अंतर्साधना की महान विधियां तथा उनके अनुरूप चलने पर ऐसी सिद्धियां मिलने का वर्णन किया गया है जिनके होने का आभास भी सहज नहीं होता पर वह साधक के हित में काम करती हैं।
उपरोक्त तीनों श्लोकों अनुरूप योग का मूल आशय के साथ ही चित्त को सांसरिक विषयों से विराम होने पर होने वाले लाभ की व्याख्या की गयी है। जैसा कि सभी जानते हैं कि योग की आठ भाग हैं-यम, नियम, प्रतिहार, आसन, प्राणयाम, धारणा, ध्यान तथा समाधि। जैसा कि हम इनका क्रम देख रहे हैं कि इसका चरम समाधिपद है। यही वह स्थिति है जब चित्त सांसरिक विषयों से प्रथक होने पर आंतरिक शांति तथा आनंद में डूब जाता है।
सहज लगने वाली यह स्थिति अत्यंत कठिनता हो प्राप्त होती है। इस साधक का अनुभव यह है कि समाधि की कोई अवधि नहीं होती। वह पांच मिनट की भी हो सकती है तो एक घंटे की भी। अधिक अवधि तो केवल संसार से पर रहने वाले सन्यासियों के लिये ही संभव है। ग्रहस्थ के लिये पांच दस मिनट की समाधि भी उसे आनंद के साथ नवीन ऊर्जा पैदा करने वाली होती है। योग का मुख्य उद्देश्य भी यही है कि साधक को सांसरिक विषयों में संल्लिपता में हुए परिश्रम से विश्राम तथा संघर्ष से मिले तनाव से मुक्ति के साथ ही व्यय ऊर्जा की पुर्नप्राप्ति हो सके। आसन तथा प्राणायाम तथा ध्यान से तन, मन के साथ ही मस्तिष्क को राहत मिलती है तो समाधि से संपूर्ण जीवन चक्र ही साधक के अनुकूल होता जाता है। सिद्धियां उसके हितार्थ सदा सजग रहती हैं, यह अलग बात है कि उसका पता चिंतन करने पर ही चलता है।
योग से भौतिक लाभ होता है पर अभौतिक भी होता है। मस्तिष्क अनेक बार संभावित संकट तथा लाभ का संकेत देता है। इसलिये हम अपने सासंरिक विषयों में संल्लिपता के लिये अपने समक्ष स्थित विकल्पों में अपने अनुकूल साधनों का चयन कर सकते हैं। संभव है कि अनेक लोगों को यह अंधविश्वास लगे पर साधक ने अपने बीस वर्ष साधनाकाल में जो सीखा है वह अन्य पाठकों से साझा किया जा रहा है।
लेखक दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप,ग्वालियर
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