श्रीमद्भागवत गीता में भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि यह संसार मेरे संकल्प के आधार पर ही स्थित है। इस संदेश के आधार पर अगर चिंत्तन और मनन करें तो यह अनुभव होगा कि हमारा निजी संसार भी हमारे संकल्प के आधार पर ही निर्मित होता है। अनेक लोग अपने अपने ढंग से अपने इष्ट की आराधना कर यह मानते हैं कि वही सारा काम करेंगें। इतना ही नहीं नियमित रूप से आराधना करने के बावजूद वह हृदय में सांसरिक कार्यों में कपट, लोभ तथा अहंकार धारण किये रहते हैं। इस कारण अपने कार्यों में बाधा तथा परिणाम में अनिष्ट प्रकट होने का भय उनके मन मस्तिष्क में रहता है। स्पष्टतः विचारों के साथ ही संकल्प की शुद्धि अगर हमारे स्वयं के मन में नहीं है तो फिर अपने इष्ट से यह आशा नहीं करना चाहिए कि उसकी आराधना करने से ही यह संसार अपने लिये अनुकूल सदैव रहेगा।
विदुर नीति में कहा गया है कि
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न देवा दण्डमादाय रक्षनित प्शुपालवत्।
यं तु रंक्षितुंमिच्छन्ति बुद्धया संदिभर्जन्तिम्।।
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न देवा दण्डमादाय रक्षनित प्शुपालवत्।
यं तु रंक्षितुंमिच्छन्ति बुद्धया संदिभर्जन्तिम्।।
हिन्दी में भावार्थ-देवता लोग चरवाहों की तरह डण्डा पहरा नहीं देते। जिस भक्त मनुष्य की रक्षा करना हो उसकी बुद्धि में उत्तम तत्व स्थापित करते हैं।
यथा तथा हि पुरुष कल्याणे कुचते मनः।
तथा तथास्य सर्वाथीः सिद्धयन्ते नात्र संशयः।।
तथा तथास्य सर्वाथीः सिद्धयन्ते नात्र संशयः।।
हिन्दी में भावार्थ-जब कोई व्यक्ति अपने हृदय में कल्याणकारी विचार धारण करता है वैसे ही उसके सामने परिणाम भी सामने आते हैं। इसमें केाई संदेह नहीं करना चाहिए।
वैसे एक बात तय है कि अपने किसी भी इष्ट की हृदय से आराधना करने पर अंततः विचार और संकल्प शुद्ध होते हैं पर इसके लिये यह जरूरी है कि हम अपने इष्ट से काम में सुखद परिणाम की बजाय अपनी बुद्धि को शुद्ध करने की याचना करें। पवित्र बुद्धि से विचार और संकल्प स्वतः शुद्ध होते हैं। तब मनुष्य अहंकार और तनाव से मुक्त होकर अपने सांसरिक कार्यो के सहजता से पूर्ण कर अपने अनुकूल परिणाम प्राप्त कर सकता है।
लेखक-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Writer-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
writer and editor-Deepak Raj Kukreja 'Bharatdeep', Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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