समस्त ब्लॉग/पत्रिका का संकलन यहाँ पढ़ें-

पाठकों ने सतत अपनी टिप्पणियों में यह बात लिखी है कि आपके अनेक पत्रिका/ब्लॉग हैं, इसलिए आपका नया पाठ ढूँढने में कठिनाई होती है. उनकी परेशानी को दृष्टिगत रखते हुए इस लेखक द्वारा अपने समस्त ब्लॉग/पत्रिकाओं का एक निजी संग्रहक बनाया गया है हिंद केसरी पत्रिका. अत: नियमित पाठक चाहें तो इस ब्लॉग संग्रहक का पता नोट कर लें. यहाँ नए पाठ वाला ब्लॉग सबसे ऊपर दिखाई देगा. इसके अलावा समस्त ब्लॉग/पत्रिका यहाँ एक साथ दिखाई देंगी.
दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका


हिंदी मित्र पत्रिका

यह ब्लाग/पत्रिका हिंदी मित्र पत्रिका अनेक ब्लाग का संकलक/संग्रहक है। जिन पाठकों को एक साथ अनेक विषयों पर पढ़ने की इच्छा है, वह यहां क्लिक करें। इसके अलावा जिन मित्रों को अपने ब्लाग यहां दिखाने हैं वह अपने ब्लाग यहां जोड़ सकते हैं। लेखक संपादक दीपक भारतदीप, ग्वालियर

Tuesday, July 29, 2008

संत कबीर वाणी:पत्थर के सालिग्राम का भरोसा नहीं

कबीर पाहन पूजि के, होन चहै भौ पार
भींजि पानि भेदे नदी, बूड़ै, जिन सिर भार

संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि जो मनुष्य पत्थरों की पूजाकर इस संसार के भवसागर को पार करना चाहते हैं वह अपने अज्ञान का एक बहुत भारी बोझ अपने सिर पर बोझा उठाये होते हैं और इसलिये डूब जायेंगे।

कबीर जेसा आतमा, तेता सालिगराम
बोलनहारा पूजिये, नहिं पाहन सो काम

संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि इस विश्व में सभी प्रकार के देहधारियों में बसने वाला जीवात्मा सालिग्राम (परमात्मा) का ही रूप है। जो बोलते और चलते हैं उनको तो पूजा जा सकता है पर पत्थर पूजने से कोई लाभ नहीं है।
कबीर सालिगराम का, मोहि भरोसा नांहि
काल कहर की चोट में, बिनसि जाय छिन मांहि

संत कबीरदास जी कहते हैं कि पत्थर के सालिग्राम का भरोसा नहीं किया जा सकता है क्योंकि क्रुर काल की चोट वह सहन नहीं कर पाता और उसे कोई दूसरा छीन भी सकता है।

यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्दलेख पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप

No comments:

विशिष्ट पत्रिकायें