भींजि पानि भेदे नदी, बूड़ै, जिन सिर भार
संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि जो मनुष्य पत्थरों की पूजाकर इस संसार के भवसागर को पार करना चाहते हैं वह अपने अज्ञान का एक बहुत भारी बोझ अपने सिर पर बोझा उठाये होते हैं और इसलिये डूब जायेंगे।
कबीर जेसा आतमा, तेता सालिगराम
बोलनहारा पूजिये, नहिं पाहन सो काम
संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि इस विश्व में सभी प्रकार के देहधारियों में बसने वाला जीवात्मा सालिग्राम (परमात्मा) का ही रूप है। जो बोलते और चलते हैं उनको तो पूजा जा सकता है पर पत्थर पूजने से कोई लाभ नहीं है।
कबीर सालिगराम का, मोहि भरोसा नांहि
काल कहर की चोट में, बिनसि जाय छिन मांहि
संत कबीरदास जी कहते हैं कि पत्थर के सालिग्राम का भरोसा नहीं किया जा सकता है क्योंकि क्रुर काल की चोट वह सहन नहीं कर पाता और उसे कोई दूसरा छीन भी सकता है।
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